बचपन की वो मीठी यादें ,
वो नन्हीं-सी अठखेलियां ,
याद आती है बहुत ,
वो भोली-सी नादानियां !
वो माँ का आँचल और
पापा की अंगुली थामें ,
चलना, गिरना और फिर संभलना !
वो नन्हीं हथेलियों से अपने चेहरे को छुपाना ,
फिर उन्हीं हथेलियों से झांक कर मुस्कुराना !
वो टिमटिमाते तारों को पकड़ने की आस में
आसमान को एकटक यूँ ही तकते रहना ,
और न पाकर उन्हें मायूस-सा हो जाना !
वो नन्हें हाथों से मिट्टी का घरोंदा बनाना ,
और लहरों का उसे अपने संग बहा ले जाना ,
लेकिन फिर भी मिट्टी के नए घरोंदे बनाना !
वो बारिश की फुहारों से ख़ुद को भिगोना ,
और घर आकर माँ की डांट खाना ,
लेकिन अगले ही पल एक प्यारी-सी मुस्कान पर ,
माँ के गुस्से का गायब हो जाना !
वो नए-नए खिलौने लाना और
अपनी गुड़िया से बातें करना ,
वो आइसक्रीम और चॉकलेट की
अपने बड़ों से सिफारिश करना ,
वो इन्द्रधनुषी रंगों से
अपने घर की दीवारों को सजाना ,
वो तुतलाती हुई आवाज़ में
नई-नई कवितायें सुनाना ,
और सवालों की लम्बी लड़ियों में
सबको यूँ ही उलझाना !
वो भोली-सी सूरत बनाकर
अपनी हर ज़िद मनवाना !
वो मासूम निगाहों से
अनकही बात बताना !
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